३४ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। सो. अहोप्रिया सुनपान मोहिंजान घर को कहा। भये दिवस गुजरान अइहौं इत रजनी समय ।। लीलावति की बांह भाय सखासमुखी गही। अपनेघरकीचाह डगर बल्यो दिजमाधवा ।। रोवन रंग सुरंग अनुरागे जागे नयन । बबिछकिमये मतंग बलकन सेझमतचलत॥ सरिता केतट आय झलझलान अनुरागयुत। नौदाको रसपाय मगरूरी दिल पे चढ़ी। माधो करि अस्नान दई अंजुली भानुको। पूजा विधि परवान सोकीन्हींसरितानिकट ॥ (चौपाई बिरहीउबाच) सुन सुभान यारा दिल दायक । अबघह कथान कथवे लायक! (तुभानउवाच) अहोमीत ऐसीजिन भाखो। कथिकै कथान आधी राखौ। (बिरहबचन कथा प्रसंग) दो. सुमिरि २ गुण मित्रके दह्यो चिरहके दाप। माधोनल करबीणलैपंचम कयो अलाप ॥ यथामकर संक्रांति को यात्री चलत प्रयाग। स्यों नारी सब नगरकी चलीं विप्रअनुराग ॥ भुजंगप्रयात । सुनौ विप्रको ज्ञानकुलकानछंडी । नारीन- गर कीराग अनुरागमंडी। हतीं जो जहां रूपजैसे जहाँते । च. लींदौरिसोलाज त्यागे तहाँते ॥ चलीं माधवा पासको बालजा तीं। हंसें तालदै दैन काहूसकातीं ॥ छुटेबार बाँधेनलज्जा सँभा हैं। चहूंओरते माधवा को निहारें ॥ जकीसीथकीसीचकी चित्त डोलें। रजाचित्तको तौ मजाकोनखोलें ॥ करयो जातनाहीं अचंभौसोभारी ।न जान्योकियोमाधवाहालकारी। दो० घर २ कूहरसीभई कूहरही पुरछाय। ऊहर सब कूहरभई वनितनलगी बलाय ।।
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