पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६०

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३२ बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । सूझत न जिनको येह स्वरगमकर जरौयथा ।। इतिश्रीविरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा विरहीसुभानसम्बादेवालखंडेषष्ठस्तरंगः ६ ॥ इस्कमुहब्बत नाम अथअगिलाव खंड। सातवांतरङ्ग प्रारंभः दो० बिरहतंतु को अंतकर भजुराधे घनश्याम । लीलावतिके धाम को माधो चल्यो सकाम। बेठि एकही सेज में लगेदोनों बतरान । त्यों सुमुखी रुचिकै दिये तियके करमें पान ।। व्यभिचारिन को केलिमें झलन रंचकहोय । लाज तजे उर उरभजै हरबरात है दोय ।। याते कछुबरणैन कछु अाभूषण शृंगार। व्यभिचारिन की केलिमें केवल कहत विकार ।। छंदबिलावल । पहिराय बसनसुरंग।तिमिलसत केशरअंग॥ श्रृंगार भूषण बेलि । अंगसाजसुबेलि ॥ त्रिविधा सुगंध समेत। छवि फूलमालादेत ॥ चांदनी सेवनाय । पुनिसेज बंधतनाय ।। बीरा परस्पर खात । रसअंगअंग बतात॥ छातीछुई जबपियना थ। तबबाल पकरयो हाथ ।। दो यथानारंगी रेशमी तिहिसमान कुचदोइ । पूरबपुण्यन ते पुरुष ग्रहण करतहैं कोइ ॥ सो० सुमुखी झरपलगाय आँखमाधवाकोदई। चलीपाप मिसपाय झपटबाँह बालाधरी।। सु० जानकेरीतनवोदन की छलिकैगहि माधवाबालसकेली। सोहिलखी बिलखी तवहीं जवहीं सुमुखी धरिवाहढकेली। बोधा छुड़ायो खरैपहुँचाता हायकह्यो चहबालन केली ॥ येरीअरीय सखीसुनिये इहिधाममेंमोहिं न छोड़अकेली। छंदत्रोटक । तियचाहतवाँहन्छुड़ायभजों । पियचाहत है कवहूं