३. विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। छन्दसमुखी । पातीपाय सुमुखीवाम । आईमाधवाके धाम॥ पातीबाँचमाधवलीन्ह । हियमें हँसेदूती चीन्ह ॥ कैसे रहतसो कहहाल । लीलावती प्यारीबाल ॥ सुमुखीकहै सुनुममनाथ ॥ जबसेलूटोतेरोसाथ ॥ निशिदिन माधवाकीटेक। कारणकरतरहत अनेक ॥ त्यागेवसन पानीपान । नैनननीर नदिनसमान ॥ग्री- षमतपनतेरीप्रीत । बिछुरन जानया बसरीत । नैनाभये वादल श्याम । बरषतरहत आगयाम ॥ पठायो मोहिं तेरेपास । दरशन की करैवहआस । योसुनमाधवा दुखपाय नि नरहनाशूछाय।। सो. दोष दीजिये काहि दीनबन्धु प्राधीनसब । सो अब मेंटनजाहि पैयतजो दैयतपहिल ।। दंडक । सुनहे सुभान मेरोदरद अपार द्यौसभोजन नभावै रैनरंचकनसोक्त । तेरीये तलाव तालाबेली तनमेरे चैनभावदि- लहर इनआंखन से जोबत ।। बोधाकविचीकने चवाई धरैखण्ड उठेमनमें उठाहसोतो मनहीमें गोवत । निरदई दईपै मेरो कौन बशप्यारीतूतौ अंदर में मेसेदिलंदर में रोवत ॥ बशना किसीके सोतो हाथदीन मानकहें और सोकहै कासहेजो है आपनीकरी।। लगालगी होत तीनलोकमें नसूझो और ठौरहू कुठौरकोन शंक रंच कधरी ॥ बोधा कवि अब इस भांति सुखनाहिं ऐसे बिछुरग- ये की पीर उमॅगिहिये भरी ।। कीजैका उपाय काहि दीजै दो- पप्यारी अरी लगन इन आंखिन की आखिरी गरैपरी ।। सवैया दहिये विरहानल दावनसोनिजपावन तावनको सहि ये। चहिये सुखतो लहिये दुखको दृगवारपयो निधिमें बहिये कविबोधाइतने पैहितू ना मिलै मनकी मनही में पचैरहिये गहिये मुखमौन भई सोभई अपनी करी काहूसेका कहिये । दो. अबतूमोको लेयमिल भयतजके निरशंक। दो दुख नाहककोसहै कर विनलगै कलंक ॥ को जाने पुनि है कहा होनहार की बात । पलकत फावत के परे बीत कल्प से जात॥
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