विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । कहै वहै जोई मनआवै । जाको मजा न कोऊपावै ॥ घटैदरद मेरोहियकी जातें । कहुवे भीत मीतकी बातें। इश्कपन्थ नहिं चीन्हत क्योंहीं । बरगद भयेबड़े तुमयोहीं॥ बस्तु वहैजो औरै दीजै । बोकाटै टेरेनाहिकीजै॥ सुनहुं वृषभतालवदी बातें । खोयो जन्म बिनौलाखातें ॥ बूझतये दिवाल तुम बोलो। कारणउर अन्तर को खोलो। इश्कहकी कीहै फुरमाया। चिनामजाजी किसी न पाया। हजरत नवीकही थी आगे। सौ कुर्राकाजी को लागे । वोबेकागा कर्कश बानी । तू क्या इश्कमज़ाजीजानी॥ बिछुरे का दिल मनमें आवे । अरे नीम तू क्यों न बतावे ।। क्यों पीपल तू थलहल डोलै । इमली क्योंन बाउलीबोलै ॥ हरगज दरगज बिलबिल वेला । खूबखेल मस्ताना खेला ॥ हजरतनवीकहरफरमाया । कानीको कानावर पाया। क्या रसाल तुमपुत्र डुगायो । हकमुकाम धनीको गायो॥ अहेलाड़ले कूयरूपवर । एकबेर क्यों न कहोहरीहर ।। यहसुन बूझें लोग लुगाई । घरभूले के कईरिसआई ॥ खबर भयेमाधो समझाया। सो भूला जिनने योगाया। सहन में बैऊरध रेखा । योहो अजबतमाशा देखा। योही गस्त नगरकोदेही । पै नहिं लखमें परतसनेही ॥ दो० उरबिरहाजुर सो ज्वलित पुरलखि भयेउदास । तवतकि चल्योतड़ाग ढिग शंकरमठसुर बास ॥ चौ० नमस्कार शंकरसोंकीन्हा । पुनिदिजमाधोबीणालीन्हा।। बहुविधि शंकरको गुणगायो। पीछेदिलको दर्दसुनायो । ये स्वामी शंकरजग नायक । मेरीपीर सुनौ तुम भायक ॥ विछरी प्रिया वल्लभा मोहीं। सो दुखनाथ सुनावोंतोही ॥ तोटकछन्द । गजगामिनिकामिनि बामबरं । सुखदायक मोहियपीरहरं । सुकमारियप्यारी नेहभरी। हिरणाक्षय को किल नादकरी ॥गवढीनवदी दिजराज मुखी। परवीन प्रिया बनिता
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