पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/५२

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ताके बिछुरे विप्रउर बाढ्यो विरह सनेह ।। इतिश्रीविरहवारीशमाधानलकामदलाचरित्रभाषाविरही सुभानसम्बादेशापखंडेचतुर्थस्तरंगः ४ ॥ (अयअगलावखंड) छंदमोतीदाम । गई अपने घरको वहवाम। भईतवहीं अति कोपितकाम॥ बढ्यो विरहान रहयो चितचैन । ढल्यो हितमाहि बन्यो विषखैन ।। रहीपट ओढ़ अटापर सोइ । नहीं दुख दीरघ जानतकोइ ॥ सखी सुमुखी तियकी परवीन । दशालखि चित्त असंभवकीन। कतियके जियखेदनआजु । भयोजुरकैयहकन्हि अकाजु॥नहीं तियके मुख पै यहलोच । करै सुमुखी अपने चित शोच।।जगी इतनेखनमें वहवाल । करी अकरी मनमथ विहाल ॥ भये गलोचन रंग विशेख । कपी सुमुखी तियको मुखदेख ॥ परीपियरी सियरी मनमाह । रही जकसी थकसीकहि काह। नहीं मुखबोलत डोलतवीर । कछूतनकी मनकी कहुपीर ॥ गही जड़ता नहिं बोलत बैन । भई कहवेदन संत कहैन ॥ कहूंउम की झिझकी डरमान । लगी कहूंडीठके मूठबखान ॥ कह्यो कित बारदयो चितचैन । चले ढरके भरके जुगनैन ॥ छुटी जड़ताभई चेतन बाल । कयो सुमुखी सुन मोहियहाल ।। दो। इश्कनशा बेशक पिये कहै सखी सों बैन। मेरे तेरे चित्तको तनकउ अंतर हैन । बैन कहत तद्यपिबनै अन कहने की बात । हसिके दीन्हों काठमें पांव आपने हाथ ॥ सो मैं तोसों कहतहों पर न दूजे कान । कान २ जाहिरभये कान २ दै जान ॥ चौ० । निश्चयपायवालतबबोली। पीर आपने दिलकी खोली। कहें बाल सुमुखी सुन प्यारी। मेरेउर बेदन यह भारी॥ दो । सुमुखी कहै सखी सुन मोते घटी न होय । तेरेमनकी चाह पर तन मन डारों खोय ॥