विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । लजि ॥फूलभरीगजरा पहिरैउर । माधवत्यों सुमिरत्तहरीहर ॥ दो । फुलवारी के रति लखी सर्द सुकल पखिरात । रही वही चुभि चित्त में सो छवि कही न जात॥ (अथ माधवा छवि कथन) संधारका छन्द । शिरजदै पाग विलसत सुबेश । रहि जु- ल्फ २ धुंधरारि केश॥ उर सुमन हारतुर्रा जरीन । कुम कुमत्रि पुंड्र भृकुटी परीन॥ छंदविला । कटि पीत पटशुभ देखा कछनी सुरंग विशेख॥ गलबीच मुक्कामाल । पगपाउड़ी लहिलाल । छंदपधरिया। जगमगताड़त गजराज हाथ । चंपक चरन तन रति नाथ ॥ कुंडल लसत नवत सरूप । छविको देखरीझत भूप ॥ करमें लसत लकुटसुरंग । झलकत प्रेम हिये उतंग ॥ अरुण कटाक्ष भरे सनेह । करमें बीन अति छवि देह ॥ चौ० । बेसकइश्क विप्रउरमाहीं । पढ़िवोगुनियो सूझतनाहीं॥ बीणालिये नगर में डोले । दिल अंदरकी बात न खोले ॥ दो । धनको गुणको रूपको विद्याको अभिमान । माधवनलको जगतमें सूझतनरनहिंधान ॥ सो। सबको सकत रिझाय जोरीझतु जेहिगुन विवश। माधवनलको पाय दिलमाहिर मोहत सबै ॥ मूरख अतिहि रिसाय माधवनलसे गुनी पर । दिग आवत उठजाय फिर पीछू गिल्लाकरै ।। माधव जिहि अस्थान लीलावति भेटे तहां। पुरवासिन उन मान कछुक प्रीति लक्षितभई ॥ तब माधवलगिकान प्यारी सों या गीतकाहि । जाते होय गलानि सो निदान कीजै नहीं। छंदछप्यदा। धनुधरो वह थलगूढजहँ दूजो नहिं खुलिये । शत्रुबधनको मंत्र अंतकाहून बूझिये । विद्याअरवित प्रगटकीजै कारजलगि । दान मंत्र अभिमानकाम कामा संग त्रियपगि।
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