विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। पूजी द्वादश बर्ष विशेखी । तासुभक्ति गौरीवर देखी ॥ छंदचौरैया। तब उमॅगि वृषभध्वज कही बनिताहिको तप देखिकै । तुप्रसिद्धिभातप वृद्धिको मा काम मांगु विशेखिकै॥वह विमुख भोगिनि तियत्रियोगिनि पुरुषकी इच्छानही भवछोरलाज मरोरके भय छोड़ यह अरजै कही। सुननाथ दीनानाथ मैं जग जनु होत तुा पद ध्यायके । जिन दीन भानु दयोन तिनहिं देत विरह बुलायके । हौं पति अपतते विमुख सुखते दुख अनेकसदा लह्यो। ममसघन बन यौवन विसूरत फलितना कबहूंभयो । मोहि दीजिये रतिनाथ सो पतिनाथ गिरिजानाथ ये । कहे शम्भहोय समस्त पूरखजन्म पियसो साथये । द्विज शापघोर घटैनहींजेहि घरीलाघटपानहै।पुनिहोय भापति पीयको गतिनाथ तोरतिवानहै। दो० । बरपायो पायन परी परमप्रीति करनारि । पुनि आई निज गेहको लीलावति तिहिवारि॥ चौ० । संधि पाय लीलावति नारी । भई पायबामणघरवारी ॥ पुहुपावती पुरी अतिसुन्दर । तिहिसुवास मनचहत पुरन्दर । गोविंदचन्द भूपतिहि जानो। वेदवन्त प्रतिवन्त बखानो ॥ रघूदन्त प्रोहित तिनकेरा । खेदवन्त कुलवन्त नवेरा ।। सीतवृन्तातन के घरनारी । तिहिघर बासलीन्ह सुकुमारी॥ जन्मद्योस साइति असजानी। पुराचीन पविजौन बखानी॥ दो। मारगसित तिथि त्रैदशी निशि भरणी पदपाय । जन्मलीन्ह लीलावती रघूदंत घराय ।। (अथारति जन्मकारण चौपाई) निजअस्थान मदनरति नारी । करहिशाप बश चिन्ता भारी॥ कलियुगप्रथमचरण जगमाहीं। अबतक भूपपापरति नाहीं ।। पुनिनिराट कलियुगजबआवै । तबकोपीरकौनकीपावै ॥ नरदेही इहिअवसर लीजै । शाप भोगकोयोगनकीजै ॥ दो। विग्रहौन मनमथ कहयो नृपतनयारतिहीन । मिलनशापके हाथहै शोचकीजियकौन ॥
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