पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४२

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१४ बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। कठिन विदेश कहबाम चारमास बन बन फिरो॥ यों कह अपने गेह गई बियोगिनि बालतव । मनमथ दरद सनेह प्रायो निजअस्थान को॥ (अथलीलावती जन्म) सो०। द्वापर युगके अन्त पुरी बनारस के विषे । कायथ नाम सुमन्त तासुसुता लीलावती ॥ बालदशामें बाल पढ़यो ब्याकरण भाष्यतब । निजकृत गंथरसाल चरचाहित नूतनरच्यो। छंदचौपैया । विद्यादशचारी बड़े विचारी पढ़ीकुमारी चौं- सठकलाबखाने । बुधवंतन सगड़े कुपंथनखंडे सबविद्याधरजाने। पंडित उपदेशी सहज सुबेशी एक एकदिनआयो । षटआगम जाने बेदवखाने सबविद्याधरजायो। चटसारीआयो विप्रसुहायो सबही आदरकीन्हो । अासन वो बासन भोजन खासन सुर सरिता जलदीन्हो ॥ भोजनकरपाड़े चरचाचांडी तुरतहिरास्वि- ढ़ाई। भटक्यो दिशि चारह चारचवारहु पंडित मिल्यो न भाई ॥ सुनके इतायो सुयश सुहायो धन्य धराधरकासी। पंडितजी- तेलाखन भाषत भाखन नरशिव नारशिवासी॥सवही जुरिआये मोदबढ़ाये चरचा जुरके कीजै । होरैहूजीतै प्रभुताजीतै कौन एकलिखलीजै। जो तुमसबहारौ होतसरे पायँनमेरेलागो। सब गरभझारके शिर फिकारके जाँघतरे होभागो ॥ तुम जीतो आछे आगे पाबे खड़े गलिनमहँहूजौ । हौं ओरछोरलौँ निकसचो- स्लों जंबु सुयश दैदीजो दो। चारपहर चरचाकरी कर करार परवान । काशी पुरवासी सबै भये न तासुसमान ॥ चौ० । चारपहर यामिनी बिहाई। भोरखबरलीलावति पाई ॥ ताको जीत सक्यो नहिंकोई । अचरज यहै नग्रमें होई ॥ दो। भोर शोर सुनिशहरमें लीलावतिमतिज़ोर । आयजुहारी विप्रको पुरवासिन है मोर ॥