पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४०

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। जेहि बनितन पूरखकहूं ताहिमिलो घनश्याम ॥ इतिश्रीविरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा बिरहीसुभानसंबादेशापखंडद्वितीयस्तरंगः २॥ (इश्कवरविक्रमनाम) (तीसरातरंग) ( अथाअगलावखंड) चौंकासुनबरुरुचिसोइप्रेमकहानीविरहविकलबनिताकुलानी।। चलि संकेत भूमि त्रिय भाई । ढूँढा बहुत न मिलो कन्हाई ।। छंदसंयोगतावटछाँहपायपायोननाहातियहियेहोतमनमंथदाह करचीनलीनएरवीनसाज । गुणकथन कीन्हतहँकीन्होनराज ।। सवैया। तब नेहनफादिलमोललियोछविधापनीलकेव्यानेदई। पुनि माललैदाम चुकायोनहीं मुलकात चिन्हारउ भूलगई ।। घटै कीमत बोधा जो माल फिरे वंजिके बेवपारमें टूटठई । रुनकोप बने हमयो समझे मन वैचो नजानिकै लूटभई ।। दो० ॥ ब्याहु व्याहु बोधा सुकवि करीनिहायत खूब । बरद बंदिदी आशिका बेदरदी महबूब ॥ विद्यापदछंद । इहिजगकोन प्रीतिकरिरोयो । कीन्ही प्रीति पतंग दीपसों तुरत प्रापनोखोयो । सुनत कुरंग तीनवधिकरके बान हियोदे अोड़े। सुरन मध्य सुरराज देहते भगपालो नहिं छोड़े ॥ भई पपान बामगौतमकी शशिसकलंक निहारो। मृगके मोहभरत नृप मृगहो चखो सघनबिचचारो॥ सोई ब्रजवनितन पर बीती कहने कछून प्रायो। बोधालगि उहि प्रेमपंथमें कौन न गयो डहकायो॥ चौ०।सुनसुभानइहिविधितिथगायोधिनुषवाणधस्मिनमथनायो। बाउनवाम विरह मत मोई। जानत मनमथ के वह जोई। अंशुवा बहै ठाडोभरि आवे। जब अखरौटी बीन बजावे ॥ ताहि देख दैताल तहाई। मनमथ बहुधा बाल खिजाई ।