को उनके पहुंबाआने की आज्ञा दी और जबकामकंदला स- हितमाधवानल अपनेभवनके द्वारपरपहुंचेतो मातायुतसवनारि- यों ने बहूबेटे को मुहचायन और टीकाकर गृहप्रवेश कराय ब. हुप्रकार सुमंगल गीत गाती भई और कुल के सबरीत्यनुसा- र नेग होने के पश्चात् जब अगवानी का दिन निकटआन प. हुंचा तो विद्यापतिराजा विक्रम के डेरे में जाता भया और कामसे- न सहित नेवतकर और बरात की शोभा प्रतिष्ठा के हेतु विनय कर अपने घरको आया अबरघुदत्त के यहांका वृत्तान्त सुनिये कि राजा गोविंदचन्दकी प्राज्ञानुसार घरके और प्रजाके सबछो. टेबड़े आनन्द में कोई तो मंडफ बनाने और कोई सामग्रीआ- दि इकट्ठी करने में मग्न थे और तय्यारीहोत करते में जवमंड- वाकादिन आपहुंचा तवरघुदत्तने सबनगरका निमंत्रणकिया और राजा गोबिंदचंद के पासजाय अागामी बरात के विषय का प्रसंग सुनायबोला कि अबआप कृपापूर्वक चलकर यहका- र्य (कन्या का ब्याह) सिद्ध कीजिये ऐसे बचन सुनि राजा ने तुरंतही कोतवाल को बुलवाया औरआज्ञादी कि नगरको भली भांति सुशोभितकरो और आप रघुदत्तके यहांगये कोतवालने राजाकी आज्ञानुसार उसनगरको केलाआदि बंदनवारोंसे अच्छी भांति सजा और की रात्रिको रोशनी कराई जिस्से नगर जग- मग २ होनेलगा इतने में माधवानल की बरात राजाकामसेन और विक्रमादित्य से सजीहुई बड़ी धूमधाम से रघुदत्तके यहां चली जिसको नगरकीनारियां अपने २ अटानपर चढ़ीहुईदेखने लगीं और जब कि बरात रघुदत्त के द्वारपर पहुंची तब आतश- बाजी हुई और रघुदत्त ने दूल्हा के टीका में हुयगय और बहुमू- ल्य रत्न दिये और बरात को डेरा देताभया और भलीभांति जे. वनारकराई और दूसरे दिवस माधवानल और लीलावती की भांवरेपड़ी और रीत्यनुसार दहेज इत्यादिक नेगहोनेके पश्चात् बरात के साथलीलावती की विदाहुई जिसका वर्णन आपको
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