पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१९

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( १७ ) हेनरनाथ आपने बड़ी कृपा की जो घरबैठे मुझे दर्शन दिये आर सनाथ किया इसके अनन्तर राजा विक्रमादित्य ने माधवानल और लीलावती का सम्पूर्ण प्रसंग कहसुनाया और उसकाली. लावती के साथ स्वयम्बर रचने के लिये निवेदन किया जोसु. नि राजा गोबिंदचंद ने भी हर्षसहित स्वीकार किया और बि. दाले अपने मंदिर की ओर सिधारा वहां से थोड़ीही दूर बढ़ने पर उससे अचानक कामावती के राजा (कामसेन) सेभेट हुई फिर रीत्यनुसार मिलाप कर राजा अपने महलोंमें पाया और यहांराजा विक्रमादित्यने भी कामसेन राजा वामाधवानलसहित अपने डेरे को सिधारे अब राजागोबिंदचंद का वृत्तांत सुनिये जबकि राजा दरबार में गया तब रघुदत्त को पास बुलाया और उससे सम्पूर्ण वृत्तान्त प्रगट कर माधवानल के साथही लीला- वती के स्वयम्बर रचने के लिये प्राज्ञादी जिसको सुनकर रघुद- तने भी स्वीकार किया तिसके पश्चात् राजाने ज्योतिषियों व पंडितों को बुलवाया और व्याहका मुहूर्त सुधवाया और री- त्यनुसार लग्न लिखवाकर नाऊ ब्राह्मण हाथ विद्यापति (माधवानलके पिता) के यहांभेजी यहां सबप्रसंगविद्यापतिने जान कटुम्बियों वा सनेहियों को बुलाय लग्न रखवाय नाऊ ब्राह्मणों को तो बिदाकिया और आप राजा विक्रमादित्य के डेरे को जा राजा से सम्पूर्ण घरका प्रसंग कहता भया तिसको सुनि राजा अति हर्षितहुआ और माधवानल को बुलवाया तब माधवानल ने ज्योंही पिता को देखा त्योंही चरणों में शीश नवाय बहुत भांति पिता से मिलभेट पिता पुत्र दोनों एकत्रहो राजाके सन्मुख बैठगये पश्चात् राजाने लग्न आई हुई जानकर विद्यापतिको बहुतकुछ हयगय द्रब्य दे बोला कि आप अब जाय ब्याह की तैयारी कीजिये यहकह तुरंतहीमाध- वानल सहित कामकंदलाको स्थपरचढ़ाय उनके साथ(विद्याप- ति)विदा किया और अपने सेनापतियों वा बहुत से योद्धाओं