विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १५५ रेशम को जो विछावनो ऊपर तनो बितान। बैठारे भूपन सहित रघुदत अति सुखमान ॥ तोमरछन्द । पलकाविचित्र बनाय । तापैवस्त्र दियेबिछाय॥ लीलावती माधोजाय। तहबैठियों सुखपाय । सबबने भूषणअंग। पहिरेदुकूल सुरंग ॥ शोभाअधिक सरसाय। मैं देहुं पटतरकाय ॥ घनदामिनी बहुभांति । शशिदेखिताहिलजात ।। दो० नेगसकल कुलकेभये बेदनकहे बखान । सबबरात डेरनगई अतिआनँद उरमान ॥ मोतीदाम । कुलयजमान रघुदत्त बुलाय । गयेदेनदायजो स- बकोलिवाय ॥ गजबाजि रथ शिविकाविशाल । मणिगण अनेक मुक्तानमाल ॥ दीनेबहुत भांतिके कनकथार । अरुभांति २ अ. म्बर अपार ॥ दो बार २ बिनतीकरैकहत जोरकरहाथ । सेवाकोदासी दई तमको में रतिनाथ ॥ चौ० बहुप्रकारसों भयोविवाहा। नरनारिन को भयो उछाहा।। नेगसकल कुलकेभयेजवहीं । विदाकरीवरातको तवहीं ।। दो० मातपिता कोभेंटके लीलावति सुकुमार। चलीसासुरे भेटिकै सबसखियन तिहिबार ।। चौ० हय गय बाजिदास अरुहाथी । माधोकोदीन्हें बहुभांती॥ लीलावतिके सहितसुहायो । दुलहबनो विप्रघरआयो ।। दो० कलश पांवड़े आरतीगीत सुमंगलगाय । मातायुतनारी सबै मिलीं माधवैआय ॥ मुहवायनटीका सुकरिगोरि गणेशमनाय । पुतहूयुतनिजपूतको माता चलीलिवाय ॥ चौ० पूतसहित पुतहूघरआई। घरीचारतक बजीवधाई । दानबहुतमँगतन कहँदीन्हों। निवतोसकल नग्रको कीन्हों ।। इहिविधिव्याहु माधोकरभयऊ। सब पुरवासिनअति सुखलाऊ॥
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