पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७७

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चौ. बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १४१ दो. उतै माधवा विप्रसों विक्रम बोल्यो चैन । चलौडगर चल देखिये पुहुपावति को चैन । ० दशहजार गजरथ सुभ साजै । राजा देश २ के राजै॥ नर समूह गनि पार न पाई। क्षिति तमाम तंबू तनछाई ।। यहसुनि खंड पाँच में प्यारी । लीलावति भाई तिहि बारी॥ यथा मेघ माला छबि छाजै। यों दल पुरचकहूंदाराजै ॥ पेशवान शत सातक संगी। माधव नल विक्रम बजरंगी॥ डगर चले तिन पुरी निहारी । अमरावति ते सरस सवांरी ॥ चारहुं दिशि आरुण्य सुहाई । बागतड़ाग मँडल सघनाई ।। सुबन कलश मंदिर प्रति सोहैं । कलशन ललितपताकाजोहैं। चौक बजार दिवाले देवा । योगी यती करें तहँ सेवा ॥ सरिता रम्य अमल जल देखी। मंदाकिन सम शोभ बिशेखी॥ दो यह अवास बसत तिय लीलावति तिहि नाम । शीलवंत सुखमा सुरत गुणनवरसअभिराम ॥ इत ने क्षण जन एकतहं कुन्नस करकर जोर । अर्ज वंत ठगढ़ो भयो नजर अय भय छोर ॥ निगह पाय बोला बचन हे कलिमलन कलेश । आवत तेरे मिलन को गोविंद चन्द नरेश ॥ बचन सुनत क्षिति पती को जरद दुलीचा ल्याय। करे बिछौना दूरतक भूमि सुगंध सिंचाय ॥ सिंहासन परछत्र युत मसनद चारो भाग । उचित र बैठार ने सबराजन अनुराग॥ चौ० हुक्मपाय नरनायक केरा । तुरतहि खड़ाकीन्ह तिहिडेरा ॥ बहुत वितान जरकसीताने । कितिक दुलीचा गिलम बखाने ॥ दो० अये बिराजो बंधु यों विक्रम प्रज्ञा दीन्ह । मसनद नीचे पावँ धर अंगमालका कीन्ह ॥ सभा बीच भूपति सबै मिलकर के कर प्रीति । बैठे निज २ आसनन अपनी २ रीति ।।