१४६ बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । अट्ठाईसवाँतरङ्गप्ररम्भः॥ दो० स्वपने देखी माधवा लीलावती विहाल । हाप्यारी २ सुमिरि भूमिगिरयो तिहि काल ॥ कष्टित रवसुनि मित्रको कष्टित उठिअकुलाय । हाय २ कहि कंदला द्विजको लयोउठाय ॥ चौ० सखिन सहित कंदलानारी । माधोसों बोली तिहि बारी॥ सुनो विप्रमाधोमेरे स्वामी । भई कहातुमको बेरामी ॥ कहाँ बुझाय बाराजिनल्यावो । किहि कारण प्यारी गुहरावो ॥ सो सुन विप्रकयो तिहिपाहीं । अकथ कथाकहबे की नाहीं ॥ सो. अहोप्रिया सुन प्रान शंकायुतमाधो कहें। मोहितोहि चिंतान कानन हो कानन सुनी।। कहीनयाते जाय जाय शील याके कहत । तातें तनमें लाय तन ताऊँ ताकीतपन ॥ चौ. यहसुन फेर कंदला नारी । माधोसों बोली सुकुमारी ॥ के करतूत सखिन कछु कीन्हीं। कै मैं चूकगई मतिहीनी॥ के कछु कामसैन फिर कीन्हा । कै काहू दूती मत दीन्हा॥ कै कछु काल कला अवरेखी । के कोऊ सपने प्रिय देखी ।। चूकैसखी दूरतिहि कीजै। मेरीचूक सिखापन दीजै॥ कामसैन को डर कछुथोरा । निकट उज्जैनपती को डेरा ॥ दूतीचरित ध्यान करलीजै। निश्चय काज सुफल तोकीजै ।। काडर होनहारके माहीं। मोहिं तोहिं जब अंतरनाहीं॥ जो कदापिस्व प्रिय देखी । तौकर तासु तलाशविशेखी। सत्य होय तो थान मिलाऊं । यद्यपि भवनभानकेपाऊं। एक और शंकामों काहीं । जो गजरा दहिने करमाहीं॥ रुचि २ काहूबाल बनावा । तुम्हरे करमें कैसे आवा ॥ अबजिन मोहिं दुरावो स्वामी । जिनदिलपर प्रोडो बेरामी। जोप्यारी पियके मनप्यारी । सो स्वामिन सौ बेर हमारी॥
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