पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७३

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बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १४५ छंदभुजंग प्रयात । दिशाचारहों पौनको चक्रधावै ॥ कई कोकिला कूकिके लाइलावै ॥ कहूं भीरभौंरानकी घोरभारी । कहूंतानसारङ्ग बीणनादन्यारीकहूं कामिनी कंथऊंचीअटारी। उठेकाम कल्लोलयारेनसारी ॥ दिशाबारहों द्वारिया चबखोले । हरीलाल पीरीडरीझर्पडोलै॥ खरी चांदनी ज्योंचंदेवा तनायो। घनो गारि घन्सारसारै वहायो । रची चांदनीसेज सुमनादनी की। अहैसेनि साकैनिसारामजीकी॥ स. लखिये पतिझार पलास बढ्यो नवेली दवागिन ज्यों दहतीं। सुनि कोकिला कूकन काम भभूकन चंपक झूकनते सहतीं ।। कवि बोधा जे कोऊ प्रवासी कहूं तिनकी बनिता दुख यों कहतीं । धनिवेई त्रियाया बसंतसमय छतियाँलग कंथकीजे रहतीं।बैशाख मास ॥ दो० संयोगी बिरहीनको तनतावत ज्योंलाख । सुन सुमुखीकी साखि यह बीस.विस्वावैशाख । छंदप्रमानिका । कठोरकोकिलाररै। पपीहराहियोहरै ॥ प्रचं डपवन ज्योंचले। लतादि वृक्षत्योहलै ॥ सखी कहाविथाकहीं। दईदई सोई सहौं । नमित्र इत्तावही । न चित्तचैन पावही । सो सुनि सुमुखी यहपीर बालापन बेधन दई। क्योंकर धरियेधीर सुधि नहिं माधोनेलई ॥ बीते बारहमास मास २ गलमांस गयो। रहीनिगोड़ी श्वास माधोके श्वासनलगी। माधो मेरेयार यारी में ख्वारी करी। बीती अवध अधार अबजीवों आधार किहि ॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादेयु द्धखंडेलीलावतीबारहमासीसम्पूरणमसत्ताईसवांतरङ्गः २७ ।। इश्कगुजराननाम श्रृंगारखंडे । १६