पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१७

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और सखियों को साथले राजभवन में जा प्रवेश किया जब कंदला दरवार के समीप जापहुंची तब एकाएकी माधवानल की दृष्टि कंदला पर तथा कंदला की माधवपर पड़तेही दोनों बाजूसेअपने हाथपसार और सबलज्जात्याग दोनों हियेसे लग भेटकरनेलगे और दोनों की यहदशा देखसखियों ने पाउनको न्यारा किया पुनिदोनों मिलराजा के पासजा दोनों नरेशोंको अंजलिजोर स्तुति कर आशीर्वाद दिया जिसके अनन्तर दो- नोराजोंने सम्मतिकर माधवानल कामकंदला कोबनारस बारा- णसीका राज्य दिया और बहुतसा हयगय रत्नादि आभूषण दे उनकोजाने की आज्ञा दी जिसके अनन्तर राजा कामसेनरा- जा विक्रमादित्य को आतिथ्य और सत्कारसे प्रसन्न करताभया और राजा विक्रमादित्य ने भी अपना प्रणपालराजा की प्रा- तिथ्य स्वीकर की और कामसेनकी प्रीति के कारण कुछदिव- सविक्रमादित्य को कामावती में वास करना पड़ा और यहां जब माधवानल कामकंदला दोनों अपने भवन में आये तो ब्राह्मणों को बुलाय बहुतसा दानदिया और दास दासियों को भी बहुत सा पारितोषिकदे विदा किया और दोनों सुखपूर्वक विहार करने लगे कुछ काल सुख से भोग पुनि एक दिवस मा- धवानलने अपनीप्यारी लीलावती को स्वप्न में देखा कि बिरह ब्यथा में बहुतपीड़ित है तो हायप्यारी २ पुकार पर्यक से नीचे गिरपड़ा माधव के गिरने का शब्द सुनि कंदलाभी अकुलाउ- ठी ज्योंही किमाधव को ब्याकुल दशा में पड़ाहुआ देखात्यों- हीहायहाय कह उठकर माधव को सचेतकिया और उसी समय सखियन सहित माधवानले से बिहाल होने काकारण पूछनेल- गीतब माधवने स्वमहोने तथापुहु पावतीनगरीमें लीलावतीकी प्रीति होने का सम्पूर्ण वृत्तान्त कहसुनाया तिसको सुनिकंदला ने रात्रितो उसी अवस्था में बिताई और प्रात होतेही राजा बि- क्रमादित्यके समीप जा बिनयपूर्वक माधवानल को रात्रिमें ली-