१३८ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । नसे पीर कहैं दिलकी दिलदारतो कोई दिखातनहीं। बरवै । यह दिल में दिलगीरी लखतुन आन । कैदिल जाने आपनो कौदिल जान॥ छंदत्रोटक । सजि सावन दावनगीर चढ़यो । नभघोरक- ठोर निशान मढ्यो । बकपंगतश्वेतध्वजाफहरै । तिनकोलखि कै बिरही थहरै। घनघोरत भेगलमत्त मते । बिरहीजन प्राण नकाज दते ॥ रणमंडनहै धुजा चपला । तिनको लखिकै थहरै नवला ॥ रणशूरमयूर घनै चिहरें । घुरवाझुकसाउथसे बिहरैं ।। रणठाढ़ियचातकचारुधरै । यह भेष कवित्तनचित्तहरै ॥ जुगनू गनि जामगि ज्योति जगै । रनघोर कठोर सो तोपगै॥ त्रिबि- धातहपवन तरङ्ग चलै । विरहीनहियो द्रुम जोर हलै ॥ सुरप- ति कमान विमान छई । घनवानन की बर्षासुठई ॥ सरसेवर बुंदपरे धरनी। सरिता उमड़ी तजिकेतरनी ॥ जल में जलबुंद कपोल परे । दसा जनुझूलन वृष्टिकरै ॥ जुरइन्दु बधूमग में डगरे। बिरही जनु शोणित बुंदपासुमुखी यहरीति नवनिभई । सुखदायकते दुखदंतदई । बिनभावन कौन सहाय करै । सगरे निदराहट मौधरै॥ दो० समयपाय विरहीनको भेषटर्सटी देत । सरिताके तटबैठक मजलस मुजरालेत ।। दंडक । ररतमयूर मानो चातक चढ़ावै चोप घटा घहरात तै- सीचपल छटाछई । तैसी रैन कारी बारिबुंद भरलाई भेषि झि. ल्लिन की तान रुचि बाढ़त बही नई ॥ साजो चित्रसारी नई प्रीतम पियारी गावें मघायो हिंडोरा कोरी प्रीतमें मई । बरपा बहारतरुणाईकोतमाशोमोहिंसावनकीरैन मनभावनदगादई॥ चौ.माधोमोहिंमहादुखदीन्हा। वर्षासमय बियोगिन कीन्हा।। सजहिं श्रृंगार अभषण नारी । करहिं गान ते पियहिपियारी॥ गलबाही डोले दृगराती। नवल नारि जोबन मद माती ।। दंपतिमिलै हिंडोरा अलहिं ! मोहिंविरहकी शूलन मूलहिं ।। 2
पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।