पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६०

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । चौमासएक विक्रमनरनायक । अन्नपान कीन्होंनहिं भायक॥ कीन्हें सुखी बियोगीदोई। ऐसो हठ पारत नहिं कोई ॥ विरही सुख संदेह मिटायो । नव विक्रम नृपभोजन पायो । जो जैसी करणी नृप करही। सोई पगुसिंहासन धरही। इत कंदला माधवा विरही। बूझति कुशल क्षेम युत थिरही। वसन पटम्बर भूषण नाना। विपन दयो कंदला दाना ॥ वारिजवाहिर सखियन दीन्हों। मिलनअनंद कंदला कीन्हों।। शुकप्रवीण की प्रस्तुति कीन्ही विपति सँघाती पियकोचीन्ही। छंदत्रोटक । लखिजान भुजान परै बिलसै । जनकंद्रपदोइ तुणीर कसै ।। समलाज मनोज सुवाल हिये । बिहँसै पट अं- चल ओट दिये ॥ पिय नाहियँ २ यों कहती। मनमाह उमाह धनो गहती॥ मुसक्याय कभू मुख हाय कहै । तब माधव हिये सुखं छायरहै । कुच चार विचार कहा लहिये । मदनदलकेक- लशा कहिये ॥ कटि छीन प्रवीन उतंग करै । उमग्यो तन स्वेद प्रवाह टरै॥ कुचसंध सकीरन के उचकै । मनहूं उहि पारनजा- यसकै । हिरनाक्षन जोर कटाक्षकरै।मुखहट्ट लखें मनुचावधरै।। पीरीतनज्यों बिरहा सरसी। अनुराग ललाम बड़ी नरसीवि- छुरी अलके चहुंघा लहिये । जनुराहु ससेट शशी कहिये ॥ छ- हरैमुक्ता लहैरहियौ । तियनाक सकोर कहै पियरै ॥ चितचाय लपायलघोर करै। मदनद्दल घायल से चिहरै। दो० कनक कुलिश से चारुकुच गहे मरोरत कंत। मनहुं लंकको शीश गहि हिलरावत हनुमंत॥ दोनों जांघ भुजानपर करमें पीन उरोज । अचरजपियमुखइंदुलखिबिहँसतकंजसराज॥ मतौ २ ठहराय के रदछंद कियो कपोल। अकबकायपियपरकह्योरसअनखोहैं बोल॥ चौ. अतिअनखोहेलोचन कीन्हे । चरनखेंच कंधनतेलीन्हे ।। चरन उठाय अतिहि अनखाई । पिय को सोंह अनेक दिवाई।।