(विक्रमादित्य केपासजाय प्रणामकिया और यहां राजाकाम- सेन ने मेदामल्लको युद्धमें जूझाहुअा सुनि अपने मंत्रीको वि- क्रमादित्यके पास भेजा और सम्मतिके हेतुनिवेदनकरने कीआ. ज्ञादे विदाकिया मंत्रीको आयाजान विक्रमादित्य ने आदरपूर्व- कउसका सन्मान करि और उसका संदेशा सुनि (सम्मति)बड़े आनन्द से स्वीकार करमंत्री को बिदादी तदनन्तर मंत्रीवहांसे बिदाहोकर कामसेनके पास आसम्मति स्वीकारका वृत्तान्तसु- नायाजिसको सुनि कामसेन ने विक्रमादित्य के पास आनेकी तय्यारी की और पहुंचने के पहिले विक्रमादित्य ने आगे बढ़कर मिलाप किया और दोनों डेरामें प्राय एक सिंहासन पर विराज- मानहो हुलास सहित बार्ताकरनेलगे और राजा कामसेन अपनी दिठाई की क्षमामांगी जिसके पश्चात् कामसेनने माधवा- नलकोबुला अपने सबक्रोधको त्याग भेंटकी और कुशल क्षेम आपुसमें पूछी फिर कामसेन राजाने विक्रमादित्य से विनयकी कि महाराज प्रापचलकर मेरा भवन पवित्र कीजिये जिसके ऐसे नम्रबचन सुनि विक्रमादित्य माधवानल सहित मंत्रियों को ले स्थपर चढ़ कामावतीको गवन किया और वहां अवधनाथके दर्शन करि सहस्र गऊ ब्राह्मणों को दानदे पुनि वहां से चल राजा के भवन में प्रवेशकिया और रा- जा कामसेन विक्रमादित्य को दरबार में लेजाकर प्रीतिपूर्वक सत्कार कर दोनों नरेश सिंहासन पर विराजमानहुये और प्रीति सहित वार्ता होने के पश्चात् कामसेन ने कंदला के बुलालाने की प्राज्ञादी और इतने ज्योंहीं कंदला से राजसभा का सम्पू- र्णप्रसंग तथा राजा का संदेशा सुनाया त्योंहीं उसके बामांग फरकने लगे और अपनी अनुचरियोंको बुलाय राजसभामें साथ चलने के लिये बोली यह सुनिवे सखियां दौड़ बस्त्रा- भूषणले आई और कंदला से श्रृंगार करने के लिये कहापरन्तु उसने प्रीतम के मिलाप में देर होने के कारण शृंगार न किया
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