विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १२१ द्वैकरजोर अर्जयहकीजै। द्विजकोकाम कंदलादीजै ।। यहउपाय करकेनृपश्रावें । तरह काम कंदलापावै ॥ दो० कबीरबैताल तब मोहिं न आनलखाय । कोसमर्थ संसारनृप विक्रम जापैजाय ॥ छप्पय । दसराजा चंदेल बीस चौहानतीसभर । छत्तिसगूजर गोंड़गोरसुरकी छप्पनघर ॥सठनपराठौर साठतैलंग फिरंगी। पीपरकुरमतुरक असी हाड़ा सफजंगी ॥सिरनेतबवेले बैसपुन गहिरवारपठि हारसत । समरस्थविक्रमादित्यकेइते भूपचौकीरहत।। छंदसुमखी कोनरनाह औरसमरत्थाविक्रमजाहि जोड़ेहत्थ॥ जाकोधाकुप्रबल प्रचंड । थर २ कैंपतभारतखंड ॥ असको भ- मिपाल निहार । करगहि खड्गमडहिरारि॥ होनाहिलखहुँ क्षत्री कोय । जोविक्रमकेसनमुख होय ।। कामसैनवचन छप्पय । अहेवीरवैतालवृथा जिनगालबजावै।जवहीं गहाँकृपान कौनमोसनमुखआवै ॥ सोवेदोऊ दीनरहत जूतीकरलीन्हें । जि. नकृपान करधरी बांधवैरिन तिनदीन्हें । ममहट्टभहजाहिरजगत झूठीवातनभाषाहय । करौं बैर उबरै तद्यपि सो यद्यपि सेरन सिवरख्या हिय ॥ बैतालबचन थर २ कँपै पहाड़ उदधि उछलै प्रकाश कह । रबिरजसो पुरजाय दैसमें रैनहोहितहँ । अमदहोहिंमदमत्त गर्भगविन तिय डारें। झिरना झिरे पषाण सिंहशंकित चिक्कारें। छूटजाहितेगबै- ताल भनिकोक्षत्री सन्मुखरहहिं । सुनकामसैन नरनाहतू जा- दिनखड्ग विक्रमगहहि ॥ राजाबचन अहेभहमत नहहहबोलत कसबाणीसदृघटसब करौंबद्यविक्रम रजधानी ॥ कुट्टकुटक पुनिल क्षत्रसिंहासनल्याऊं । पुनिउ. ज्जैन निरशंकएकक्षत्रिपतिकहाऊं ॥ जाहिरनतोहि मेरी गुसा
पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१४९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।