से लगाया और सब वृत्तान्त सुनाया जिसके पश्चात् राजाने बैतालसे दूसरी बूंदअमृतकी लेकामावतीनगरी कोसिधारा और कामकंदला के भवन में (जहांकिवह मृतकपड़ीथी)गया और उसके मुहमें अमृत छोड़ा ज्योंहीं अमृतकंठमें प्रवेश किया त्योही हायमित्र माधवाकह कंदला उठ बैठी तबराजाने माधवानलका चरित्रबिस्तारपूर्वक वर्णन कर अपने सबसैन्य सहित चढ़आने का वृत्तान्त कहसुनाया निदान कंदला के(प्रीति)अथवा पति- बतकी परीक्षालेने के हेतु राजाने उसके गले में बाहँडालरसमय बचन कहे जिसका प्रत्युत्तर कंदला नेयहदिया कि आपतो ब्रा- ह्मण केदासही और मैं ब्राह्मण की दासीहूं इससे आपको ऐसेब्यं- गवचन मुझसे न बोलना चाहिये तंब राजा बोला कि जो कोई गणिका को ब्यदेवे वो उसीकीदासी होजातीहै तब कंदलाने कहाकि मैं वोगणिका नहींहों में तो सिर्फ माधवानल के सिवाय और दूसरे को अपनी बाँह नहींदी और एकसमय ऐसाभीहुआ था कि एक दिन कामसेन राजा ने आकर मुझसे प्रीति करना चाहा और ज्योही मेरेहृदयमें हाथलगाया त्योही उसके हाथ ज. लक्लगये तबसे फिर वो मेरे नृत्यकरनेके सिवाय और कोई इच्छा नहींकरता और मैं आपको अपने पतिव्रतकी परीक्षा देतीहूं ऐसा कहकामकंदला ने राजाको अपने पतिव्रतकी परीक्षा के हेतु अ. ग्निको दाहिने हाथ में रखकर बोली कि आप डेरे में जाकर दे- खिये कि माधवानलके बायें हाथमें छाले पड़े यानहीं यदि पड़े होतोजानलेना कि हमारी उसकी प्रीतिमें किसी प्रकार का अं. तरनहीं है तबराजा ने कंदला को ऐसा दृढव्रतदेखवहांसे विदा हो डेरामेंप्राय माधवाको बुलायं उसके बायें हाथको देखातोयथार्थ छाला पड़ाथातिसके पश्चात् दोनों की दृढ़ प्रीति देखकर सब सभासदोंको बैताल सहित बुलाकर कहाकि आपलोग नृपकाम सेनके पासजाकर मेरा यहसंदेश कहना किया तोआप कंदला देवेंयायुद्ध मने यहाज्ञा नृपकी पाय बैताल सचिव सहितनप
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