बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। धीर धरयो॥राजा इकबातकही तवहीं । जीहै यहवाल लखौ- अब हीं॥ चौ० कहै वैद्यसबसखियन पाहीं।तुमजिनशोच करौमनमाहीं॥ हाँ इकअजब इलाज बनाऊं। मुयो सातवासर को ज्याऊं ॥ जौलौं न फिर आऊ इहि पासा । तौलों तजौंन तियकीपासा।। परख्यो चार पहर मों काहीं। हत्या मोहिं जियै जो नाहीं॥ दो क्षिति पति निजु डेरेचल्यो चितमें करत गलानि । यशकरतनअपयशलग्योधनिकलियुगबलवान॥ इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानसम्बादे उज्जैनखेडेवीसमोतरंगः २०॥ इश्ककुजनाम । अथयुद्ध खंडे ।। इकईसमोतरंगप्रारम्भः छंदपद्धारिका । नृपहत्यो करत चित्तमें गलानि । अति धन्य धीश कलियुग्ग मानि ॥ हाँकहौंका हाल सिफत तोर । पलमें पलटी तू बुद्धिमोर। हौंसुयश बाद यह कामकीन्ह । तुमअयश अन्यासे लायदीन्ह ।। इमि मरीकंदला बालयेह । उतमरहि चित्र याके सनेह । हाँजावँ कहां यह सुयशलाद । अबभयो भोरज- गजियत बाद ॥ जो जियतरहों नहिं मरोंअवातोसुयश सपूती वृथासब ।। प्रणघटेजगत उपहास होय । गजियतरह्यो जोसु- यशखोय ॥ अबमरन मोर उत्तम विशेख । जगमें उपाय नहिं- श्रानदेख। दो० अगम अंक ये भाल के यतनवृथा हैं मित्त । होनी प्रथ मै जातहै पाछे दौरत चित्त ।। धन्य२ बिधि बुद्धि तुव करी प्रानकी आन । करनवार करमें रही तेरी करी प्रमान॥ पैना करत बिचार के है ना नीकी साध । जल प्यावत प्यासो मरै अन प्यावत अपराध ॥
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