१०६ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। की चतुरंग चमू लखिये दिशिचारि ध्वजाअरुणाई। धायोक्स- न्त सदेहमनो सबभूमि पलाश के पुंजनछाई ॥ दो० चमूसबै चतुरंगसो विदाकरी नरनाथ । आप चल्यो कामावती सौसाँवतलै साथ ॥ माधौवचन चौ. मेरेचित प्रतीति है ऐसी। मधुरित विरही नरनअनैसी॥ कैसे जियत कंदलानारी। नवयौवन बाला सुकुमारी॥ सो. मारन पायोमोहिं नृप बसंत अति गुसाकार । भैगरदेख्यो तोहिं मुरक्यो फेरनिराश है। राजाबचन दो० जो मैं निजकानन सुनौमुई कंदलानारि । तो यमपतिको बांधि कै देउँ उदधि में डारि।। चौबचन बिलासकरत नर नायकासहितविप्र स्थपैसुखदायक।। बीत्योपक्ष एकमग माहीं। आयो नृप कामावति काहीं।। कोसआठ पुरखाकी जवहीं । कह्योबिप्र राजासों तबहीं। देखो नृपकामावति पाई। योजन पांच बसत समुदाई ।। कनक कलशबहु भांति बिराजै । ते मंदिरनरेश के राजै॥ यह जो अटाघटा सम जोहै । सोऊ हर मंदिर दृग जोहै । जो यह उदित भान समदेखी। रतनक्षत्र क्षितिपतिकालेखी॥ नीचे महल होयनटसारा । तिहि नीचेलागत दरवारा पूरवदिशा अटा इक जोहत । ललित चँदेवातापर सोहत ॥ तिहि अवास वह बसत कुमारी । अवप्रभु दक्षिणओर बिहारी॥ कनक कलशगुम्मट अति भारी । अवधनाथ मंदिरधनुधारी॥ कंजारन तालसुख दायक । खनबाग तिहि तटनरनायक ॥ कोश एकवाकी पुर जवहीं । डेरा कीन्हों विक्रम तबहीं॥ दो• मदनावति के बाग में डेराकरयो नरेश । प्रापचल्यो कामावती किये बैदको भेश। चौ. वैदभेष महाराज बनायो । सत्वर चलि कामावति आयो
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