त किया और अयश सहितजीने से तो मरना भलाहै ऐसा वि चार राजा ने मंत्रिनको बुलवाया और चन्दनकी चिता बनाने की प्राज्ञादी मंत्रियों ने माधवानल के देह त्याग करने का हे तु पूंछा तब राजा ने सब वृत्तांत वर्णन कर कहा कि मैंने वृथा दोनों के प्राणघात किये इससे मैं भी विपके साथ चितामें दग्ध होऊंगा और तुमप्रजा पालनकरो राजाके मुखसे ऐसे वचन सु. नि मंत्रीने हाथ जोड़ बहुप्रकार समझाया पर राजाने एकनमा ना और यह वृत्तांत दलमें प्रकाशित हो गया अन्तमें राजा ने- चिता सजवाय माधवानल की लाश को उसी पर रखआय चितापर चढ़ने लगा कि उसी समय एक ब्राह्मण भी प्राय पुकार कर कहने लगा कि हे राजा विक्रमादित्य आजप्रातः का- लतू मेरा मुखदेखकर उठाया इससे तुझे यहदोषप्राप्तहुआ इससे में भी तुम्हारेसाथ जलूंगा जिससे यह मेरा मुख दूसरे की हानिन करै यहसुनराजा ने ब्राह्मण को उत्तरदिया कि हे द्विजवर तुमयह वृथा चिंता क्यों करतेहो यहकह ज्याही राजा चिता पर चढ़ने- लगा त्योंही वैतालाय प्रकट हुआ और राजा का हाथपकड़- चितासे उताग और सब वृत्तान्त (माधवनलकामकंदलाकेमृत्यु- का)सुनराजाको धन्यवाददेने लगा जिसके पश्चात् तालबोला कि आपयहां से सबको विदाकीजिये और मैं एकांत में माधवा नलको अभी जिलाये देताहूं यहसुनिराजाने सबको वहां सेजा- नेकी प्राज्ञादी और एकान्त होनेपर बैतालने शेश सुतको प्रा. कर्षण किया आकर्षतेही शेशसुत (नाग) आयउपस्थित हुए और बैताल ने उनको सब प्रसंग सुनाया जिसको सुनिशशसुत ने राजा की प्रशंसा की और दोबूंद अमृतलाकर बैताल को दे आयअंतरध्यान होगये और बैतालने वह अमृतले माधवाके स मीप जाउसके मुंहमें छोड़ा ज्योही कंठमें बूंद प्रवेश हुआत्योंहीं माधवानल हायकंदला कहउठबैग और बैतालदिजकोलेराजा- के समीप आया और राजाने अतिप्रसन्न होकर माधवाको हृदय
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