पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२९

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १.१ जब देखों निज प्रीतम काहीं। मुक्त होनमें संशयनाहीं॥ दो आपहि होके स्वारथी मोहिं चलैलराम । न तो न जाउँ वा लोकको बिना कंदला बाम ॥ बिनयारी का ले करों सुरपुरहूकोवास। मा मित्रसहित मरिखोभलो कीन्हें नरक निवास ॥ चौ० तबनृपकमंत्रिन मतकीन्हा। ज्वाबएक माधौकोदीन्हा।। ऐसी न सराहिये यारी। चाहौ लियो पराईनारी॥ परदारा अपनीकरजानत । ताहीसोंतुम इश्कबखानत ॥ बरवसकोऊ परधनचाहै । विनादियेकैसे वहपाहै ।। (माधव) दो० ल्यावतचोर चुरायकेदियो भिखारीलेत । बरियाई हाकिमकहें आनमिलेसोहेत ॥ वामेरीनिज नायकामैं वाकोनिजुनाह । कछुदिनजानीआपनी नृपपै भयोगुनाह॥ (राजाबचन) दो पांचलाख उज्जैनकीबस्ती कोपरमान। कल्पलतासी कामिनी केती करौं बखान ।। छदसुमुखी। द्विजतुमलखो सबउज्जैनि । घर २ सोहती मृग- नैनि । विटियावधू बालाकोइ । कौनौजाति सुन्दरहोइ ॥ जामें चुभेतेरो चित्त। सोमेंदेहुतो कहँमित्त । माधौकही नाहिंन राज । दूजीवामसों कहकाज | मेरे मित्तके समकोइ । तीनों लोकमें नहिंहोइ ॥ यहसुनसचिव सबंपरवीन । उत्तर माधवाकोदीन ॥ दो० हुकुमपाय महराजको धीरज क्यों धरियेन । जोहोनीसोहोयगी अबपीछे फिरियेन ॥ सनिशिवासरनींद औ भूखनहीं जबतेहियमें मेरेआनबसी। मिलतेनबने जगकीभयते बरहूनरहै हियकीहुलसी || कविवाधा सुनहें सुभान हितू उरअंतर प्रेमकी गांसगसी । तिनकोकलकैसे परनिरदईजिनकी हेकुयागर अाँखफँसी। बातनही समुझावै सबै