पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१२

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स्थाको प्राप्त हुई तत्पश्चात् दोनों की प्रीति का प्राद्योपान्त बै यजी के सन्मुख प्रगट कर दिया और बोली कि उस पुरुषका- शोध अभी उज्जैनका लगता है तब बैद्यने दोनों की ऐसी पर स्पर प्रीति देख मनमें धन्यबाद दिया और बोला कि हां उस माधवानलब्राह्मणको मैंने उज्जैन नगरीमें अति दुर्बल देह और बिरहके कारण अतिजीर्ण अवस्थामें देखाथा परन्तु थोड़ेदिनहु- ए कि वह ब्राह्मण तो नाश को प्राप्त होगया वैद्यके ऐसे कठोर बचन ज्योहीकंदलाने सुने त्योही हाय मित्र माधव ऐसाबचन कहप्राण त्याग दिया जब राजाने कंदलाकी ऐसी दशा देखी- तब अति चकृत और व्याकुलहो पश्चात्तापकर बोला कि निर- अपराधमैने झूठ बोल इसबाला ( कामकंदला) का प्राण लि. या और पापका भागी बना इसके पश्चात् उसकी दासियां भी हाहाखाय पुकारने लगी तब राजा (बैद्य) में उनको धीरजदे- समझाया कि मेरेपास तो सातदिन के मुए हुये प्राणी के जि- लाने की औषधि है तुमक्यों ऐसा पश्चात्ताप करती हो वैद्य के ऐसे बचन सुनि दासियाँ चुप होरहीं और राजा उनसबको इसप्रकार उपदेशकरता भया कि जबतक हम औषधि लेकर न लौट आवें तबतक तुम इसबाला को इसी अवस्थामें रखना और मेरी बाटचार पहर ताई हेरना जो मैं आकर न जिलाऊंगा- तो इसकी हत्या मुझे लगेगी ऐसा कह औषधी लानेके निमि- त्तबिदाले मनमें अति गलानि करता हुआ राजाबैद्य निजस्था न को आताभया और आप तो हँसकर माधवानल को समीप बुलायबोला हेद्विज़ मैं कामावती नगरी में कामकंदला के देख ने के अर्थगयाथा पर वहां जानेपर यह चरित्र सुनने में आया- कि कामकंदला तो कुछ दिन व्यतीत हुये कि मृत्यु बशहोगई राजाके ऐसे बचन सुन माधवाने भी कंदला कंदला पुकार तन त्याग दिया यह दशा देख राजा भी चकृत होता भया और म- नमें चिन्ता करने लगा कि मैंने वृथा झूठ बोल दोजीव काघा-