पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११८

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मित्रहीकी करतकलोलै मिटैरंचक न साधवा ॥ बोधाकवि नगर उज्जैनचैनचाहँ टिक्योभूकेदिवाले लागीदृगनसमाधया। कंदला केदरददिलदारमें धूम २ योगीभयो डोलतषियोगी मित्रमाधवा ॥ चौ. सुनिशुक्रवचन वाल उठिधाई । चलिदखादरखततराई। अहो परखते पियके धावन । मेरेपास उतरि किन आवन । दो. उडिवालाके बांहपर बैठो सुवाप्रवीन । माधोनलकेदरदको रुक्काताकोदीन ॥ छंदविलाप । सुनिकंदल मृगनैनि । हाँआगयो उज्जैनि॥ आनंदतनमनमित्त। तुवफिकर ब्यापतिचित्त॥ हौंकाकरौंहेबाल। वशनाहिं कर्मकराल | हॉकरतकारजजोय । थिरनेहजातेहोय ॥ वहहोनहारसमर्थ । होतात तो न अनर्थ ॥ निहचै यहममचित्त । अबमिलहुँतोकहमित्त ॥ तूचिन्तानकरियोचित्त । सुखसहित र- हियो मित्त ।। जगजियतरहिहौ जोय। तो फेर मिलबो होय ॥ चौ० शुककीकुशल कुशलपियकेरी। बूझीबालसहसहवैवेरी ॥ पांचदिवसबीते मगमाहीं । भोजन अबलों कीन्हों नाहीं ॥ कनककटोरा क्षीरपियायो । दृगनअंग शुकको बैठायो॥ सखिबुलाय किस्सासमझाई । जैसीकुछ प्रवीननेगाई ।। दो चिठीबांच बूझीकुशल शुकको दूधपिवाय । लगीउरहनोदेनपुनि द्विजके कृतकोगाय ॥ सोवतमोको छोड़ि केगयोछलछलकीर हीराख्यो निजकोलपै अबतक प्राणशरीर ।। हितकीन्हों सुखचाहिके सोनहिं आयोकाम । हमको वह बारी भई माया मिले न राम ॥ चौ० कहैसुवासुनु स्वामिनिमरी । दुखअपार देख्योइहिवेरी ॥ अबजोमिलनहोय सुनुप्यारी । बढे परस्पर सुखअधिकारी ॥ बेगविदाकरि मोरगुसाँइन । हों जानतमाधवा सुभाइन ॥ पल २ विरह बूड़ि द्विजआवै । कर प्रलाप कौनसमझावै ॥ कहै कंदला सुनशुकवात । तुल्यायो पियकी कुशलात ॥