पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/११७

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । मेरे तेरे मरे पुनि दोबनितामरजायँ ॥ कहै सुवासुनमाधवा होनीहतीनजाय । हरि गिरधरके हियबसै तऊकालधारिखाय । चौ. जोपे विधनायहे बनाई। तोनामिटै किये चतुराई ॥ पठवो मोहिं मैं खबरिलैपाऊं। तेरे दिलकी साजमिटाऊं।। दो दिलदुख लिखिकरशुकगरेदई पत्रिकाबांध । करिप्रणाम माधवाको चल्योकीरमगुनांध ।। चौ दिनविलमोइकंततरुमाहीं।चल्योनिशाकामावतिकाहीं॥ दिवसचार मारगसो धायो । क्षेम क्षेम कामावति आयो ।। इतिश्रीमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषाविरहीसुभानस- म्बादेउज्जैनखंडेनाम सप्तदशमोतरङ्गः १७ ॥ इश्कधकानाम ॥ अथप्रगेश अठारहवां तरंग प्रारम्भः॥ दो० भानुउदय अस्नानकरि कामकंदला बाम । फुलवारी बैठलिखी भजतमाधवानाम ।। दखादरखनडारपर बैठो सुवाप्रवीन । कथीमाधवा विपकी कथाविरहरस लीन ।। गाथा । होकंदला परवीनं । तुव बियोग ममदुखलीनं ।। छिना छिना छिन दीनं । बुद्धिस्टतमाधवा योगी॥ त्वंबियोग दिलजानं । हियहनंत मकरदिजद्रोही ॥ कुतहसुजाइपुकारं। नाजानतयहदुखकोई ॥ इत्थंसुन शुकबानी । चक्रितवाल चाहत चहुंपासं ॥ किहि यहगाथावखानं । अहमित्र माधवा वियोगी॥ सो. माधोनल गुनगाथ को जाने पेख्यो कहाँ। कितअस्थित अविनाथ कौनदिशानगरीकवन ।। प्रवीन दंडक । छोड्यो अन्नपान ब्रह्मज्ञान यों नध्योहै जाको कामनाइजो इष्टविराधया । सोवतजागत सपनेहमें चिन्ता