७७ विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा शंकरनट श्यामा पुनिहोय । जलधर सूहोकालिंगसोय ॥ दो० रागरागिनी पुत्रयुत लघुमति कह्यो बखानि । कलाभारजा नाकही ग्रंथबढ़त अतिजानि ।। इते माधवा कंदला लूटतसुख की हाट । उतै सुवावरई सुवन हेरत दिजकाबाट । मुवाकिधों कैफीहुवा इश्कतुवाके दीन । कुवाँपरयो पायो न द्विज शोचतसुवा प्रवीन ॥ भानुउदै ते अस्तलौं गायो रागसमस्त । प्रथमयाम यामिनी जबरहस रच्यो दिनमस्त ॥ छन्दमोतीदाम । लयोतव माधवा ने मृदंग । नची बनितायुत प्रेमउमंग ॥ बजेनिवरा विवरातिन मांह । कभूसुरएक कभीसत जाय। रह्यो मिरदंगगलेमिलिएक। कसुर औगति अक्षरतेक। नचीतिवरी पुनितांडवजोइ । कवित्तन छंदन की तन सोइ ॥ अदा अँग २ उमंगत जोर । उठैदिज के तनमैन मरोर ॥ दुवोगुण पै अतिरीझत दोय । रहेमिलि लोहो चुम्बक होय ॥ सो• अर्द्धरैन गुजरानजब जानी दिजमाधवा। लगि बालाके कान कह्योसुरति कीजै मयन ॥ छन्दद्रुबिला। वहको विंदाजो बाल । तिहिरची सेज विशाल पुनि सजे भूषण वेश। पिलसूजवार सुदेश ॥ तितदंपति हिये उठाइ । वहगई झरपलगाय ॥ तब माधवा उनमान । रति करी तजिकै कान॥ छन्दभुजंगी । गहीवाल की हालही पीनछाती । भई अंकुनो कोहिये यों डराती ॥ कहै नाथ पै हाथछाती न धा- रो। हितू जानहित मान दयाउर विचारो ॥ निशारंग सफ जगं कीन्हों बिहानो । हियेधर धरासो नहीं थिर धिरानो॥ हिये लाग सोवो न होवो अधीरं । कहाभीर ऐसी नतोरो शरीरं ॥ गयो माधवा कोपि कै लंकझीनो। हकारं नकार सुरंबाल कीनो॥ दिया मैलडारो उघारो न देहं । छुवोना पिया
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