से बात चीत की, परन्तु वह उनलोगों के निकट अव्यक्त नहीं रही।
नौका में सभी सो रहे थे केवल एक बालिका जागती थी। आकाश में क्या हो रहा है यह कुछ उसने नहीं देखा, परन्तु गङ्गा का जल अत्यन्त कृष्णवर्ण देखकर वह चमत्कृत और भीत हो गई। अब वह मांझियों की बात चीत सुनकर आपही आप कहने लगी कि "गङ्गा का जल ऐसा क्यों हो गया? ज्ञात होता है आकाश में बादल हुआ है"। उसकी बात एक जन युवक आरोही के कान में पड़ी वह आकाश में बादल होने की बात सुनतेही चौंक कर उठ बैठा। नाव का आवरण (पर्दा) खोलकर देखा तो पूर्व और उत्तर दिशा में भयानक बादल हो रहा है। वह भृत्य को तम्बाकू भरने की आज्ञा देकर छप्पर पर चढ़ गया। वहां वैठकर सोचने लगा। युवक बड़ा भीत हो गया था। यदि वह इस समय एकाकी इस नौका में होता, तो इतना भीत न होता पर उसके संग में दो स्त्रियें थीं।
भृत्य ने हुक्का बाबू के हाथ में दिया। बाबू हुक्का पीते पीते मांझी से बोले "जहां कहीं हो एक ठौर नौका ठहरा दो"। मांझी ने कहा "महाराज! इस पार नौका रखने की ठौर नहीं है, और यहां से दो कोस और आगे चलने पर भी इस पार नौका ठहराने का स्थान नहीं