में यह भी लिखा था कि इस प्रीतिपूरित हृदय के सम्बोधन में प्राणेश्वर से इस प्रकार सम्भाषण करना होगा।
विपिनबिहारी अब भी नीरव थे, उन्होंने विरजा का पत्र बिरजा को दे दिया।
बिरजा ने जिज्ञासा की, "यह पत्र क्या आपको भव तारिणी जीजी ने दिया?" विपिन ने कहा "नहीं" एक बात के पीछे दस बात कहना सहज है। अब विपिन ने पूछा 'भवतारिणी, वह कौन है? तुम उनके घर कितने दिन रही थी? तुम वहां से उनमे बिना कहे कहां चली गई थी? मैं पत्र की सब बातें नहीं समझ सका"।
बिरजा यह सुनकर फिर अश्रु सम्वरण नहीं कर सकी, रोते रोते कहा "मैं अभागी एक संसार मझाय आई हूँ मेरे दुरदृष्टवशत: एक संसार हत सी हो गया, भवतारिणी जीजी के देवर ने मुझे कलुषित चक्षु से देखा था"। बिरजा एक क्षण भर निस्तब्ध हो गई, विपिनबिहारी एक पार्श्वस्थ चौकी पर बैठ गये।
बिरजा कहने लगी "मैं उसकी पत्नी नवीन को प्राण के समान चाहती थी, और भवतारिणी जीजी मुझे अपनी छोटी बहन के समान चाहती थीं मैं नवीनमणि के स्वामी की असत् अभिसन्धि जान कर सर्वदा सशङि्कत रहती थी। उसने अपनी असत् पथ से कण्टक दूर करने के अभिप्राय