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शिवनाथ— जी हां, आपका किस प्रयोजन से आना हुआ?

आगन्तुक— इस पत्र के पाठ करने से आप सब जान जायँगे।

यह कहकर आगन्तुक बाबू ने डाकृर बाबू के हाथ में पत्र दिया, वह प्रदीप के निकट जाय कर पत्र पाठ करने लगे।

दीर्घ पत्र पढ़ने में किञ्चित् विलम्ब लगा, पाठ शेष होते ही पत्र के जिस पृष्ट में विपिनबिहारी चक्रवर्ती का नाम लिखा था, वह पृष्ट लौटकर शिवनाथ बाबू ने पूछा "क्या आपका नाम विपिन बाबू है"।

आ०—मेरा नाम विपिनबिहारी चक्रवर्ती है मैं बिरजा का स्वामी हूँ।

शि०— अब आपका क्या अभिप्राय है?

आ०— मैं बरिजा को स्वीकार किया चाहता हूँ।

शि०— आपने तब से और विवाह नहीं किया है?

आ०—नहीं किया, करता भी नहीं।

शि०— सुन करके हम बड़े सन्तुष्ट हुये, हमने बिरजा का समस्त विवरण सुना है। आपका अनुसन्धान हमने गुप्त गुप्त किया था, किन्तु उद्देश्य नहीं मिला। बिरजा अत्यन्त सती लक्ष्मी स्त्री है। हमारी ब्राह्मणी बिरजा से अपनी कन्या के समान स्नेह करती है, इससे बि-