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"श्रीमती भवतारिणी देवी के श्रीचरणों में,——

आप जानती हैं कि मैं आज दो बरस से निराश हूँ। में किसी से बिना कहे आपका घर परित्याग करके चली आई। कारण यह है कि आप मुझे पीछे "नवीन को वध किया है' कहकर पुलिस में देती, क्योंकि नवीन और मैं एक संग घाट पर गई थी। भुरहरी रात नवीन का शव जल में उछल पाया था। सब को सन्देह होता, मैं यदि कहती कि मैंने नवीन को नहीं मारा है तो कौन विश्वास करता? नाना कारणों से लोग मुझ पर सन्देह करते। इसीलिये मैं भाग आई।

किन्तु आज कहती हूँ, कि मैंने नवीन का वध नहीं किया, आज कहती हूँ कि मैंने नवीन को नहीं मारा। मैं उसे प्राण के समान चाहती थी। किन्तु उनके मरने के समय अपने प्राण भय से जो खोलकर रोने भी नहीं पाई उसके पीछे रोई थी।

गंगाधर बाबू भयानक पीड़ित होकर कलकत्ते के अस्पताल में आये थे। उन्होंने मरण काल में समस्त ही स्वीकार कर लिया, नवीन और मैं एक संग घाट पर गई थी, यह ठीक है, किन्तु बगीचे में ताल गिरने से नवीन ने मुझसे उसके लाने के लिये कहा। मैं ताल लेने गई, ताल ढूंढ़ने में मुझे विलम्ब हुआ। नवीन उस समय अंग