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गंगाधर के यह था। कुल था, धन यद्यपि अधिक नहीं था, किन्तु जो था, सो यथेष्ट था। अनेक स्थल में विवाह की बातचीत हुई। दो एक स्थल में गोविन्दचन्द्र आप भी कन्या देखने गये, अनेक स्थल में कन्या देखने के अनन्तर एक स्थल में मनोभिमत कन्या पाई कि विवाह का समस्त विषयही स्थिर हो गया, केवल दिन नियत करना मात्र शेष था, इसी समय में एक दिन गंगाधर निरूद्देश (बेठिकाना) हो गया। ग्रामस्थ किसी घर में वह नहीं मिला, ग्रामान्तर में कुटुम्बियों के घर अनुसन्धान किया, वहां भी नहीं मिला। दो मास अनुसन्धान हुआ गंगाधर का उद्देश्य नहीं लगा। अन्त में स्थिर हुआ कि गंगाधर मन के दुःख से उदासीन (संन्यासी) हो गया। गृहिणी ने कहा "हाय! मेरा बेटा, वह के शोक से बाहर निकल गया!"।


सप्तमाध्याय।

(ऐतिहासिक काल का वा भौगोलिक पन्था का अनुसरण करना उपन्यास रचना की प्रथा नहीं है, अतएव समय गंगाधर के निरुद्देश्य होने के दो वरस अनन्तर स्थान कलकत्ते की जेनरेल पोस्टआफिस)।

डाकघर का नियम यह है कि जो पत्र नहीं बँट जाते हैं और जिन्हें विज्ञापन देने से भी कोई नहीं ले जाता है, वह अग्नि में दग्धकर दिये जाते हैं। एक बाबू उन्हें खोल