चियों के संग नहीं मिलता, और न आलस्य व्यवसाइयों के सग दिन रात तास पोट कार बड़ी टीपटाप से समय नष्ट करता। परन्तु घर का भी कोई काम नहीं देखता था बाहर के घर में बैठकर मन मन में कुछ सोचता और केवल तमाकू का नाश करता। स्नान करने के समय अंगौछा कन्धे पर धर कर घाट पर सोचता था।
आहार पर बैठने के समय सोचता, शय्या पर सोने को समय सोचता, सर्वदाही उसका विपन्न बदन रहता था। यह देखकर घर के सब लोगों ने ही समझा कि यद्यपि गंगाधर प्रगट में नवीन को अपनी प्रीति नहीं दिखाता था, परन्तु मन मन में प्रीति रखता था। अब उसके शोक में गंगाधर की यह दशा हो गई है। गृहिणी ने अपनी कोठरी के एक अंश में गंगाधर की शय्या कर दी, वह वहीं सोया करता, रात्रि में एक एक बार चोंक २ उठता।
क्रम से वर्ष एक अतीत हुआ, घर में जो काण्ड हुआ था, सब को एक प्रकार विभूत हो गया था। गोविन्दचन्द्र ने गंगाधर का और विवाह करना स्थिर किया। सहस्र दुचरित्र होने पर भी इस देश में, इस देश में क्यों, इस संसार में पुरुष के विवाह का कोई असुविधा नहीं, अधिकांश स्थल में लोग पुरुष का रूप नहीं देखते, गुण नहीं देखते, चरित्र नहीं देखते केवल कुल और धन देखते हैं।