हुक्का पीने लगे, हुक्के में अग्नि नहीं थी, धुआँ खींचने से वाहर नहीं होता था, तथापि वह हुक्का खींचने और दीर्घ निवास परित्याग करने लगे। ग्रामस्थ प्राचीनों में से कोई कोई उनके पास बैठकर सांत्वना करगे लगे, परन्तु उनको वाक्य व्यय मात्रही सार हुआ, क्योंकि उनके सांत्वना सूचक समस्त वाक्यों ने गोविन्दचन्द्र के कर्ण में प्रवेश किया वा नहीं सन्देह का विषय है, किसी के कहने से शोक निवृत्त नहीं होता अकेला समयही शोक निवारण कर सत्का है, शोक कितनाही बड़ा क्यों न हो समय से समता को प्राप्त हो ही जाता है।
तीसरे पहर हरिपुर थाने के प्रतिनिधि स्थानाध्याक्ष (नायब थानेदार) कई जनों को संग लेकर निर्धारण (तहकीकात) करने आये उन्होंने निर्धारण करके व्यवस्था (रिपोर्ट) दी कि बिरजा सेही यह कार्य हुआ है। दण्ड नायक (मजिष्ट्रेट) महाशय को भी यही प्रतीति हुई। उन्होंने बिरजा की प्राकृति वर्णना करके विज्ञापन प्रसिध्द किया। और प्रतिज्ञा भी की कि जो कोई बिरजा को पकड़वाय देगा वह पांच सौ रुपया पुरस्कार पावैगा। थाने थाने यह बात विदित कर दी गई।
इस घटना में गंगाधर का चरित्र एक बारही परिवर्तित हो गया। अब वह गांव के गांजाखोर वा अफीम