आंखों का जल पोंछ दे। इसी लिये जल में खही हो कर रोती हूँ कि आंखों का जल पुष्करिणी के जल में मिल जाय।
बिरजा— क्यों? मैं हूँ, मैंने क्या तुम्हारी आंखों का जल कभी नहीं पोंछ दिया।
नवीन—दिया है- किन्तु कितने काल दोगी?
बिरजा—जितने दिन जीती रहूँगी।
नवीन—तुम क्या मुझे इतना चाहती हो?
बिरजा—यह तो तुम्हों जानती होगी।
नवीन—अच्छा तो यदि मैं मर जाऊँ, तुम मेरे लिये रोओगी ?
बिरजा—हां रोऊँगी।
नवीन—केवल रोओगी मेरे मरने से मरोगो नहीं? नवीन ने बिरजा को चिन्ता में घेर दिया कहा "मरूँगी नहीं क्या?"।
नवीन—तुम मुझे इतना नहीं चाहती हो कि मेरे मरने से मेरे लिये मर सको। नहीं तो इतना सोच बिचार के न कहती कि "मरूँगी नहीं क्या"।
बिरजा ने बात उड़ाने के लिये कहा "अच्छा मैं तुम्हें नहीं चाहती। तुम्हें भी मरने से कुछ काम नहीं और मुझे भी इसी समय अपने सब प्यार दिखलाने से कुछ काम नहीं, अब तुम शरीर मल मलाकर ऊपर आओ"।