में मेरे पिता की मृत्यु हुई उसके पीछे मेरी माता मुझे लेकर शान्तिपुर के एक गोस्वामी के घर में रही। माता उनके घर में पाचिका का काम करती थी ।मेरी जब सात वर्ष की अवस्था थी तब माता की मृत्यु हुई माता के मरण में मैं बहुत रोई थी उस काल में मैं उन्हीं के घर रहने लगी, दस वर्ष की अवस्था में मेरे विवाह की बातचीत हुई, कलकत्ते के बाबू के संग मेरा विवाह हुआ विवाह के आठ दिन पीछे वह बाबू मुझे कलकत्ते लिये जाते थे, उसी दिन झड़ दृष्टि होने से नौका डूब गई, मैं बहुत तैरना जानती धी। यहां तक कि लोग मुझे जलजन्तु कहते थे मैं तैरती २ नदी के तौर पर प्रकाश देखकर वहां उतर आई। इसके पीछे यह लोग मुझे देखकर यहां ले जाये।
हम बिरजा के वृत्तान्त का अवशिष्टांश लिखते हैं। बिरजा गोस्वामी की पालिता कन्या थी, इस कारण उसके विवाह के विषय बड़ा कष्ट हुआ था। बिरजा के निज का कोई दोष न था, वह सर्वाङ्ग सुन्दरी थी। किन्तु वह किस की कन्या है, इसका कोई निश्चय प्रमाण नहीं था। सुतराम् कौन भलामानस विवाह करता शान्तिपुर का एक युवक कलकत्ते में रहकर पढ़ा करता था, उसने यह सम्वाद अपने एक मित्र को दिया। वह सुनकर शान्तिपुर में एक दिन बिरजा को देखने गया देखकर वह उससे विवाह