अब कहे क्यों ना? बिना कहे कैसे तुझे तेरे बाप के घर भेजूंगी विरजा ने कहा "मेरे मां बाप कोई नहीं हैं, मैं कहां जाऊँगी"।
गृहिणी "तो रह क्यों न? कौन निकालता है तब और कोई है?" बालिका ने रोते रोते कहा "मेरे कोई नहीं है"।
वृध्दा ने जिस रात्रि में बिरजा को पाया था उस रात्रि में उसके सोमन्त में सिंदूर का टीका देखा था वह बात वृध्दा के मन में थी इस हेतु उसने फिर पूछा कि तेरा विवाह हुआ है? किस ग्राम में?"।
वि०— मैं उस ग्राम का नाम नहीं जानती।
वृ॰—तेरे बाप का घर किस ग्राम में हैं?
वि०—मैं नहीं जानती
वृ॰—तेरे मामा का घर कहां है ?
वि०—यह भी मैं नहीं जानती।
वृद्धा ने फिर किसी बात का उत्यापन न करके निद्रा मनस्य की, नवीन पास आय कर बिरजा को हाथ पकड़ कर उठा ले गई, जाते जाते उसकी आंखों का जल पोंछ दिया।
इसके एक वत्सर पीछे एक दिन बिरजा ने नवीन से आत्मविवरण कहा, यह यह है कि "अति छोटी अबला