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ने उसे उठाकर गोद में ले लिया। वृद्धा ने कहा इसे उसके पास ले चलो। चलते वृद्धा ने बालिका से पूंछा "बेटी! तेरी यह दशा कैसे हुई?” बालिका ने अति अस्फुट स्वर से कहा 'नौका डूब गई" वृद्धा ने समझा कि वैकालिक झड़ ने इसकी यह दशा कर दी। चिता को पास आय कर वृद्धा ने अपनी स्वतन्त्र आंच बलाई। एक जने से एक शुष्क वस्त्र मंगवाकर बालिका को पहिनाया और उसे अग्नि के निकट बिठाकर सेकने का आरम्भ किया। बहुत सेंकते २ बालिका का शरीर किञ्चित उषा हुआ। वृद्धा ने देखा बालिका परम सुन्दरी है और शरीर में नये नये गहने भी हैं। इस समय उसने जिज्ञासा किया कि "ऐरी तेरा नाम क्या है?" बालिका ने उत्तर दिया "मेरा नाम बिरजा है।" वृद्धा ने बालिका के अई शुष्क केश पोंछते २ पुनर्वार जिज्ञासा की कि "तेरे आत्मीय कौन हैं?" बालिका ने रोते रोते कहा "हम बाह्याण है।” वृद्धा ने उस की सांत्वना करके कहा "रो मत, अभी मेरे घर चल खोज करके मैं तुझे तेरे बाप के घर भेज दूंगी और तुझे अपनी बेटी के समान रक्खूंगी।

अनेक क्षण पीछे शवदाह शेष हुआ। शास्त्र कृत्य सम्पादन करके सब जनों ने उस मुर्दे के घर में जाय कर अवशिष्ट रात्रियापन की, पर दिन प्रात:काल गंगास्नान