रात्रि दोपहर थी, इस समय दृष्टि निवारण हो गई। केवल वेग से शीतल वायु चल रही थी। वृद्ध के लिये चिता प्रस्तुत थी, केवल उस्की मृत्यु होतेही सब बानक बन जाता अनेक क्षण के पीछे उसके कठिन निर्लज्ज प्राणों ने प्रयाण किया। शास्त्रविहित कर्म करके उसकी देह चिता पर रक्खी। चिता वायुभर से जल उठी। वृद्ध की पत्नी चिता से अनति दूर गंगातीर पर बैठकर अनुञ्चस्वर से रोदन करने लगी।
कदाचित हमारे नव्यदल के पाठक कहेंगे कि “यह स्त्री बड़ी निर्लज्ज है। जिसे प्रथम बलपूर्वक मारा अब उसके लिये क्यों रोती है?" हम ऐसे पाठकों को अनुरोध करते हैं कि वह गङ्गासागर में सन्तानविसर्जन करने की कथा स्मरण करें। जो आर्थ्यमाता पुत्र के विद्याशिक्षा के लिये विदेश जाने पर रो रो कर अस्थिर होती हैं वही एक समय धर्म के अनुरोध से छाती में पाषाण बांधकर अपने हाथ से सन्तानविसर्जन करती थीं। धर्म के अनुरोध से स्त्रियेंही क्यों? पुरुष क्या नहीं कर सकते हैं? और क्या नहीं किया है।
झड़ वृष्टि थम गई है आकाश में बड़े २ नक्षत्र निकल आये हैं, अनन्त नील नभोमण्डल में शशधर दिखाई दे रहा है, भागीरथी की तरंगें नाना रंग से नक्षत्रशशधर-