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[ दृष्टिकोण
 


उसके चरित्र पर उन्हें पद पद पर सन्देह होता; किन्तु इन मामलों में जब वे स्वयं रमाकान्त को ही उदासीन।पातीं तो उन्हें भी मन मसोस कर रह जाना पड़ता था। क्योंकि रमाकान्त के सामने भी निर्मला घूमने निकल जाती और घंटों बाद लौटती । अन्य पुरुषों से उनके सामने भी स्वच्छन्दतापूर्वक बातचीत करती, परन्तु रमाकान्त इस पर उसे ज़रा भी न दबाते ।


किन्तु कभी कभी जब उनसे सहन न होता तो वे रमकान्त से कुछ न कुछ कह बैठतीं तो भी वे यही कह कर कि-"इसमें क्या बुराई है" टाल देते । उनकी समझ में रमाकान्त इस प्रकार मां की बात न मानने के लिए ही पत्नी को शह देते थे। इसलिए वे प्रत्यक्ष रूप से तो निर्मला को अधिक कुछ न कह सकती थी किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से,कुत्ते, बिल्ली के बहाने ही सही, अपने दिल का ग़ुबार निकाला करतीं । निर्मला सब सुनती और समझती किन्तु वह सुनकर भी न सुनती और जानकर भी अनजान बनी रहती ।


वह अपना काम नियम-पृर्वक करती रहती; इन बातों का उसके ऊपर कुछ भी प्रभाव में पड़ता । कभी-कभी

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