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[ दृष्टिकोण
 


तभी तो यह. भलमनसाहत दिखाने आया है। नहीं तो मेरे पास आकर इसे ऐसी बात करने की आवश्यकता ही क्या पड़ी थी ?


पतितों को वे बड़ी घृणों की नजर से देखते; उनकी हँसी उड़ाते, गिरने वाले को एक धक्का देकर वे गिरा भले ही दें, किन्तु बाह पकड़ कर उसे ऊपर उठा के अपना हाथ अपवित्र नहीं कर सकते थे। वे पतितों की छाया से भी दूर-दूर रहते थे । अपने निकट सम्बन्धियों की भलाई करने में यदि किसी दूसरे की कुछ हानि भी हो जाये तो इसमें उन्हें अफ़सोस न होता था। वे सज्जन होते हुए भी सजनता के कायल न थे। कोई उनके साथ बुराई करता तो उसके साथ उससे दूनी बुराई करने में उन्हें संकोच न होता था।


पति-पत्नी दोनों को अलग खड़ा करके यदि ढूंढा जाता तो अबगुण के नाम से उनमें तिल के बराबर भी वव्य न मिलता ! वाह्य जगत में उनकी तरह सफल जोड़ा, उनके सदृश सुखी जीवन कदाचित् बहुत कम देख पड़ता । दूसरों को उनके सौभाग्य पर ईर्ष्या होती थी। उनमें आपस में कभी किसी प्रकार का झगड़ा या

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