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[परिवर्तन
 

लिए उपस्थित थी। उसने चम्पा के सिर में कंघी करनी चाही। किन्तु एक झटके से चम्पा ने उसे दूर कर दिया। वह स्त्री बड़बड़ाती हुई चली गई।

इस प्रकार भूखी-प्यासी चम्पा ने एक दिन और दो रातें बिता दीं। तीसरे दिन सवेरे उठकर चम्पा शून्य दृष्टि से खिड़की से बाहर सड़क की ओर देख रही थी। किसी के पैरों की आहट सुनकर ज्यों ही उसने पीछे की ओर मुड़कर देखा, वह सहसा चिल्ला उठी "दादा"!!

ठाकुर खेतसिंह के मुँह से निकल गया "बेटी"!!

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उस दिन से फिर उस गाँव की किसी स्त्री पर कोई कुदृष्टि न डाल सका।

 
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