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खड़ी थी उस आदमी ने पीछे से चम्पा को उठाकर मोटर पर डाल दिया; मोटर नौ दो ग्यारह हो गई । चम्पा का चीखना-चिल्लाना कुछ भी काम न आया ।

आध घंटे के बाद जब नवल खाना लेकर लौटा तो चम्पा का कहीं पता न था । इधर-उधर बहुत खोज की। गाड़ी का एक-एक डिब्बा ढूंढ डाला, पर जब चम्पा कहीं न मिली, तो लाचार हो पुलिस में इत्तिला देनी पड़ी । परदेश में वह और कर ही क्या सकता था ? किन्तु वहाँ की पुलिस भी, ठाकुर साहब द्वारा कुछ चाँदी के सिक्कों के बल पर, सब कुछ जानती हुई अनजान बना दी जाती थी। फिर भला एक परदेशी की क्या सुनवाई होती ? जब नवल किसी भी प्रकार चम्पा का पता न लग सका, तो फिर वह संतोषकुमार के गाँव भी न जा सका। वहीं धर्मशाले में ठहर कर चम्पा की खोज करने लगा।

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मोटर पर चम्पा बेहोश हो गई थी । होश आने पर उसने अपने आपको एक बड़े भारी मकान में कैद पाया। मकान की सजावट देखकर किसी बहुत बड़े आदमी का

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