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बिखरे मोती ]
 


ने कुछ दिन तक तो उसकी खोज करवाई; फिर उन्हें इन व्यर्थ की बातों के लिए फुरसत ही कहाँ थी ? वे तो अपना जीवन सफल कर रहे थे।

एक वर्ष बाद एक दिन फिर वह गाँव में अया। और उसी दिन ठाकुर साहब के यहाँ एक कुम्हार की नव- विवाहिता सुन्दर बहू उड़ाकर लाई गई थी। कुम्हार के घर हाय-हाय मची हुई थी। उसी समय हेतसिंह उधर से निकले । उन्हें देखते ही कुम्हार ने उनसे अपना दुखड़ा रोया | हेतसिंह का क्रोध फिर ताजा हो गया। इसी प्रकार के एक क़िस्से से नाराज होकर हेतसिंह ने घर छोड़ा था ! कहाँ तो वह भाई से मिलकर पिछली नाराजी को दूर करने आए थे, कहाँ फिर वही क़िस्सा सामने आ गया । वही प्रतिहिंसा के भाव फिर से हृदय में जागृत हो उठे। घृणा और क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया । जेब में हाथ डाल कर देखा रिवाल्वर भरा हुआ रखा था । अब हेतसिंह घर पहुँचे उस समय ठाकुर साहब अपने मुसहिवों के साथ बैठे थे। हेतसिंह को देखते हो बड़े प्रसन्न होकर बोले-

आओ भाई हेतसिंह । कहाँ थे अभी तक ? बहुत

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