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[ मंझली रानी


आयु चौदह साल के लगभग थी, तब मेरे माता-पिता को मेर विवाह की चिन्ता हुई। वे योग्य वर की खोज में थे ही कि संयोग से ललितपुर के तालुकेदार राजा राममोहन हमारे कस्बे में शिकार खेलने के लिए आए। कस्बे से लगा हुआ ही एक बड़ा जंगल था, नहीं शिकार खेलने का अच्छा मौक़ा था। उनका खेमा लंगल से बाहर कस्बे के पास ही था। कस्बेवालों के लिए यह एक खासा तमाशा-सा हो गया था। उनके टेन्ट में कभी ग्रामोफोन वजता और कभी नाच-गाना होता । लोग बिना पैसे के तमाशा देखने को झुन्ड-के-झुन्ड जमा हो जाते । एक दिन मैं भी राजन और पिता जी के साथ राजा साहब के डेरे पर गई । मेरे पिता जी की राजा साहब से जान पहि- चान हो ही गई थी। हम लोग उन्हीं के पास जाकर कुर्सियों पर बैठ गए। राजा साहब ने हमारा बड़ा सम्मान किया। लौटते समय उन्होंने हम लोगों को अपनी ही सवारी पर भेजा और साथ में बहुत से फल, मेवा और मिठाई इत्यादि भी रखवा दी ! कस्बे की कई लड़कियों और लड़कों ने मुझे राजा साहब की सवारी पर लौटते हुए उत्सुक नेत्रों से देखा । उस सवारी पर पेटकर मैं अनुभव कर रही थी कि जैसे भी कहीं

भी पाप‌

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