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बिखरे मोती]


मुकद्दमें में किसी प्रकार का भाग नहीं लिया और न पेशी ही बढ़वाई, इसलिए मुकद्दमा करीब एक घंटे में ही समाप्त हो गया।

तीनों अभियुक्त प्रतिष्ठित सज्जन थे और राय साहेब को जान-पहिचान के थे। मुकद्दमा खत्म हो जाने पर राय साहेब ने उसे माफी मांगते हुए कहा "क्षमा करना भाई, इस पापो पेट के कारण लाचार हैं, वरना क्या हमारे दिल में देश-प्रेम नहीं है ? यह कह कर उन्होंने अपनी आत्मा को कुछ सन्तोष दे डाला और जल्दी-जल्दी अस्प- ताल आए। गोपू की हालत और भी ज्यादा खराब हो गई थी। उसकी नाड़ी क्षीण पड़ती जाती थी। राय साहेब के पहुंचने पर उसने पहिली ही वार आँखें खोली; उसके मुँह पर हल्की सी मुस्कुराहट थी; धीमी आवाज से उसने कहा 'वन्देमा... 'म' की ध्वनि नहीं निकल पाई; 'म' के साथ ही उसका मुँह खुला रह गया, और आँखें सदा के लिए वन्द हो गई। उसकी माता चीख़ मार कर लाशपर गिर पड़ी। राय साहब के शून्य हृदय में बार-बार प्रश्न उठ रहा था 'यह सब किसके लिए' ? और मस्तिष्क से प्रति-ध्वनि उसका उत्तर दे रही थी, 'पापी पेट के लिए'।

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