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बिखरे मोती]

सवेरे उठने पर उन्हें याद आई कि कल ही जो उन्हें तनखाह के तीन सौ रुपये मिले थे, उसे वे कोट की जेब में ही रखकर सो गए थे। कहीं किसी ने निकाल न लिये हो, इस खयाल से झटपट उन्होंने कोट को जेब में हाथ डाला और नोट निकाल कर गिनने लगे। एक-एक करके गिने; सो-सौ के तीन नोट थे। उन पर सम्राट की तसबीर बनी थी और गवर्नमेन्ट की तरफ़ से किसी के हस्ताक्षर पर यह लिखा हुआ था कि "मैं माँगते ही एक सौ रुपये देने का वायदा करता हूँ रुका इन्दुल तलब प्रॉमिसरी नोट"-माँगते ही एक सौ रुपये! इसी प्रकार एक, दो, तीन, एक हो महीने में तीन सौ !! एक वर्ष में छत्तीस सो, तीन हजार छै सौ; तीस वर्ष में एक लाख आठ हजार हर साल तरक्की मिलेगी; फिर तीस साल के बाद पेंशन और ऊपर से !! इसी उधेड़-बुन में थे कि न इतने ही में टेलीफोन को घंटी बजी। वह चट से टेलीकोन के पास गए वोले “हल्लो।" उधर से आवाज आई "डी० एस॰ पी॰ और आप कौन हैं?" इन्होंने कहा "शहर कोतवाल।" शहर कोतवाल का अधिकार पूर्ण शब्द उनके कानों में गूंँज गया । उधर से फिर आवाज़ आई अच्छा, तो कोतवाल साहब ! आज ११ बजे जेल के

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