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मतिराम, विसमर्थ जीवन या यह । चने के जीवन का यम चने की भाजी तोड़ कर सब एक साथ ही से प्रकार खाया करते थे; और कभी-कभी छीना-झपटी भी हो जाया करती थी । हँसी-मजाक भी खूब होता था; किन्तु वहाँ किसी को कुछ शिकायत न थी । अपने पोसी कुंदन के लिए वह माँ से लड़-भिंड़ कर भी मिठाई ले जाया फरती थी । नदी पर नहाने के बाद कभी-कभी कुंदन उसकी धोती भी तो धो दिया करता था; किन्तु वहाँ तो इसकी कभी चर्चा भी नहीं हुई । कोशिये से एक सुन्दर सा पोत का बटु वनों कर सबके सामने है? तो उसने कुंदन को दिया था। जो अ६ तक उसके पास रखा होगा; पर वहाँ तो इस पर किसी को भी बुरा न लगा था। वहाँ काम लोगों को सब से बोलने, वात करने की स्वतंत्रता थी। कुंदन की भाभी नई-ही-नई तो विवाह के आई थी, पर हम लोगों के साथ ही रोज़ नदी नहाने जाया करती थी, और साथ चैठकर झूजा भी फूला करतो थी; अलाव के पास भी बैठ करती थी। फिर मैंने,कौन सा ऐसा पाप कर डाला, जिसके कारण इन्हें शहर में सर उठाने की जगह नहीं रही। यदि किसी का कुछ काम कर देना, बोलना, या बातचीत करना ही पाप है, तो कदाचित यह

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